क्या आपने कभी सोचा है कि घने जंगलों के बीच अचानक कोई शिवलिंग प्रकट हो जाए? वह भी ऐसा, जिसे न हाथी हिला सके, न इंसान निकाल सके? कढ़ाहिया महाकालेश्वर शिव मंदिर की यही कहानी आज हजारों लोगों की आस्था और जिज्ञासा का केंद्र बनी हुई है।
सन 1904 में जब इस क्षेत्र में भीषण भूकंप और चक्रवात आया, तो जंगल उजड़ गया। सफाई के दौरान मजदूरों की नजर एक अर्ध-उभरे शिवलिंग पर पड़ी। जैसे-जैसे मिट्टी हटती गई, शिवलिंग का आकार बढ़ता गया। इसे बाहर निकालने की बहुत कोशिशें हुईं, हाथियों तक को लगाया गया, पर शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ। मानो धरती ने स्वयं भगवान शिव को थामा हो।
कहा जाता है कि यह शिवलिंग उज्जैन के महाकालेश्वर जैसा दिखाई देता है। हर सावन में यह शिवलिंग रहस्यमयी रूप से जल में डूब जाता है, और पंप से जल निकाला जाता है – पर जल कहां से आता है, इसका कोई जवाब आज तक नहीं मिला।
मंदिर के महंत बाबा दुखहरन दास कहते हैं, “यह कोई साधारण स्थान नहीं, यह साक्षात महाकाल की उपस्थिति है।” श्रद्धालु अंकिता और काजल बताती हैं कि यहां आने वाले भक्तों की मुरादें ज़रूर पूरी होती हैं।
हर साल सावन में श्रीमद्भागवत कथा, भंडारे और जलाभिषेक से यह स्थान तपोभूमि जैसा लगने लगता है।
इस शिवधाम की कहानी केवल इतिहास नहीं, एक जीवंत रहस्य है – जो हर बार सावन में फिर से जाग उठता है।